शनिवार, 31 दिसंबर 2011

क्या भारत की सेनाओं में कार्यरत व्यक्ति तथा कारावास मे निरोधित अथवा पागल यानी जड. एक जैसा ही स्टेटस रखते हैं?


पिछले दिनों अखिल भारतीय सेवा संवर्ग के उत्तर प्रदेश निवासी एक वरिष्ट अधिकारी ने प्रदेश की भूमि विधियों से जुडी एक ऐसी समस्या से अवगत कराया जिसे जानकर इसे आपके साथ साझा करने का मोह संवरण न कर सका सो समस्या ज्यों की त्यो आपके सम्मुख है।
उत्तर प्रदेश में यह आम धारणा है कि जमींदारी विनाश अधिनियम के लागू हो जाने के बाद अब कृषि भूमि पर से मध्यवर्तियों के समस्त अधिकार समाप्त हो चुके हैं और भूमि का मालिकाना हक उसे जोतने वाले किसान के हक में सुनिश्चित कर दिया गया है। इस अधिनियम की धारा 156 विधिवत यह प्राविधान करती है कि जमींदारी की प्रथा पुनः न उठ खडी हो इसे रोकने के लिये किसी भी भूमिधर को अपनी जमीन लगान पर अथवा पट्टे पर उठाने (स्थानीय भाषा में बंटाई पर देने का अधिकार) का अधिकार न होगा।
परन्तु अधिनियम की धारा के विस्तार में जाने पर यह पता चला कि इस अधिनियम की धारी 157 के अंतरगत कुछ अक्षम श्रेणी के व्यक्तियों को अपनी भूमि पट्टे पर उठाने के सक्षम है। अब इस प्रकार के अक्षम व्यक्तियों की सूची पर विचार करने के दौरान जो तथ्य निकलकर आये वो विस्मयकारी थे। इस प्रकार के अक्षम व्यक्तियों की सूची निम्नवत हैः-
(क) अविवाहित स्त्री अथवा यदि वह विवाहिता हो तो अपने पति से परित्यक्ता हो (divorced) या अलग हो गयी हो (separeted) या उसका पति खण्ड (ग) या (घ) में उल्लिखित किसी अक्षमता (disability) से ग्रस्त हो, अथवा विधवा हो,
(ख) ऐसा अवस्यक जिसका पिता खण्ड (ग) या (घ) में उल्लिखित किसी अक्षमता से ग्रस्त हो या मर गया हो।
(ग) पागल या जड़ हो
(घ) ऐसा व्यक्ति हो जो अन्धेपन या शारीरिक निर्बलता के कारण खेती करने में अक्षम (incapable) हो,
(ड.) किसी स्वीकृत शिक्षा संस्था (recognised institution) में अध्ययन करता हो और 25 वर्ष से अधिक आयु का न हो और जिसका पिता खण्ड़ (ग) या (घ) में उल्लिखित किसी अक्षमता से ग्रस्त हो या मर गया हो।
(च) भारत की स्थल-सेना, नौ सेना या वायू सेना सम्बन्धी सेवा में हो अथवा
(छ) निरोधन (detention) या कारावास में हो।
इस धारा की सीधी सादी चुहल भरी व्यंग्यात्मक विवेचना तो यह है कि अपनी खेती योग्य जमीन पट्टे पर उठाये जाने के मामले मे पागल अथवा जड., कारावास मे निरोधित, विधवा महिला अथवा भारत की तीनों सेनाओं में सेवारत व्यक्ति एक जैसी ही प्रास्थिति रखते हैं।
खैर यह तो हुयी व्यंग्यात्मक विवेचना परन्तु इसका वास्तविक निहितार्थ यह है कि भारत की किसी भी सेना में कार्यरत व्यक्ति अपनी अखिल भारतीय तैनाती के लिहाज से अपने पैतृक अथवा अर्जित कृषि भूमि की व्यवस्था करने में सक्षम नहीं हो सकता। जमींदारी विनाश कानून बनाने वाले नीति नियंताओं ने इस ओर समुचित ध्यान देते हुये उनकी कृषि भूमि को पट्टे पर उठाने की अधिकारिता अधिनियम के अंतरगत प्रदान की।

अब बात करते हैं अखिल भारतीय सेवा संवर्ग के अधिकारियों की जिनमें आई ए एस आई पी एस और अन्य अनेकों केन्द्रीय सेवायें हैं जिनका कार्यक्षेत्र संपूर्ण भारत वर्ष है और वे समय समय पर भारत वर्ष के कोने कोने में स्थानान्तरित होते रहते हैं तथा अपनी पैत्रिक कृषि भूमि की देख रेख कर सकने में अक्षम होने के कारण किसी न किसी अन्य साधन बटाई अथवा पट्टे पर देकर ही इसकी देखरेख करते है।
इसमें भी सबसे बुरी स्थिति अखिल भारतीय सेवा के आई ए एस अधिकारियों की होती है जो अखिल भारतीय सेवा के होने के वावजूद अपने पूरे सेवाकाल के लिये किसी न किसी राज्य विशेष के कैडर हेतु आवंटित हो जाते है।
अब सोचिये कि क्या उत्तर प्रदेश का कोई मूल निवासी अधिकारी यदि केरल राज्य के कैडर को आवंटित हो जाता है तो क्या अपनी तैनाती के दौरान उत्तर प्रदेश में स्थित अपनी कृषि भूमि की स्वयं देखरेख कर सकता है? उत्तर बिल्कुल साफ है शायद नहीं ! तो फिर प्रदेश में कृषि योग्य भूमि को पट्टे पर उठाये जाने की अक्षमता के अंतरगत उसकी गणना क्यों न की जाय?
विषय को विस्तार देते हुये यह भी कहा जा सकता है कि कोई भी कर्मचारी जो राजकीय सेवारत है अपने गृह जनपद में स्थित कृषि भूमि की ब्यवस्था हेतु किसी न किसी अन्य साधन यथा बटाई अथवा पट्टे पर देकर ही इसकी व्यस्था कर पाता है।
जमींदारी विनाश अधिनियम में यह प्रतिबंधित है तथापि यह किया जाता है। जन सामान्य में स्वीकृत इस प्रथा को क्यों न कानून का रूप दिया जाय जौर और उ0प्र0 जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 157 में अक्षम व्यक्ति के द्वारा अपनी कृषि भूमि को पट्टे पर उठाये जाने हेतु अयोग्य व्यक्तियों की श्रेणी में निम्न प्रकार की एक अन्य श्रेणी भी जोड जी जायः-
(ज) भारत सरकार अथवा उत्तर प्रदेश राज्य के सेवारत कर्मचारी ।


इस विषय पर आप सब सुधी पाठकजनों की राय का स्वागत रहेगा ताकि इस विचार के प्रति आम जन के मनोभावों को भी भांपा जा सके। कृपया अपनी टिप्पणी अवश्य दें

आप को उत्तर प्रदेश राजस्व (प्रशासनिक ) मंच परिवार की ओर से नव वर्ष ''२०१२'' की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ढेरों बधाइयाँ।   
                     


सोमवार, 19 दिसंबर 2011

डा0 भीमराव अंबेडकर जी के वक्तब्य में इंगित पार्टी के एकदम धराशायी होने के संभावित कारणों की पड़ताल : जैसा ‘उसने कहा था....’

हिन्दी साहित्य में गुलेरी जी की लोकप्रिय कहानी ‘उसने कहा था’ आज हमें एक दूसरे संदर्भ में याद आयी। हुआ यूं कि जब से लखनऊ कलक्ट्रेट में तैनाती पायी है अवकाश दिवस अर्थहीन हो गये हैं। तकरीबन पिछले दो माह से लगातार अवकाश के दिवस में शहर में कोई न कोई महत्वपूर्ण आयोजन होता है जिसके लिये निश्चित किये गये दायित्यों के कारण उसमें भौतिक उपस्थिति के चलते विगत किसी भी अवकाश दिवस मे मैं अपने पारिवारिक दायित्व नहीं निभा पाया हूँ।

अभी कल जो रविवार बीता है उसमें भी राजधानी में शासक दल द्वारा मुस्लिम क्षत्रिय वैश्य भाईचारा रैली का आयोजन किया गया था जिसमें शान्ति व्यवस्था व अन्य व्यवस्थाओं (?)के मध्येनजर समूचे प्रदेश से छोटे बडे लगभग 500 अधिकारी विभिन्न उत्तरदायित्यों के निर्वहन के लिये राजधानी में उपस्थित थे।


प्रदेश की लोकप्रिय मुख्यमंत्री जी (?) द्वारा मुसलमानों को अपने एजेन्डे में जोडने के लिये सार्वजनिक रूप से सच्चर कमेटी की सिफारिशों के प्रति सहमति जताकर उसके अनुसार सहूलियें प्रदान करने का संकल्प दोहराने के अतिरिक्त बाबा साहब डा0 भीमराव अंम्बेडकर जी के बताये मार्ग का अनुसरण करने का आह्वाहन किया गया । मुझे इस अवसर पर दिनांक 23 दिसम्बर 1944 को बाबा साहब डा0 भीमराव अम्बेडकर के सम्मान में सन्डे आब्जर्वर के सम्पादक श्री पीण् बालासुब्रम्ण्या द्वारा एक भोज का आयोजन याद आया क्यांकि इस सम्मान समारोह में अपने विचार रखते हुये बाबा साहब ने जो कुछ कहा था वे समस्त विचार वर्तमान उत्तर प्रदेश के संदर्भ में पूर्णतः प्रासंगिक जान पडते हैं।

इन विचारों को लखनऊ के प्रकाशक बहुजन कल्याण प्रकाशन ने संग्रहीत करा था । (बहुजन कल्याण प्रकाशन ३६०/१९३ मातादीन रोड , सआदतगंज , लखनऊ -३ . चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु द्वारा संकलित और संपादित ‘बाबासाहेब के पंद्रह व्याख्यान ‘ नामक पुस्तक प्रथम संस्करण जुलाई , १९६५ .) डा0 अम्बेडकर के वक्तब्य का प्रमुख अंश इस प्रकार हैः
(वक्तब्य पृष्ट ५४ से ५७ से लिया गया है .)



मित्रों ,

जहाँ तक मैंने अध्ययन किया है , मैं कह सकता हूँ कि-.....................
इस देश के इतिहास में जहाँ ब्राह्मणवाद का बोलबाला है , अब्राह्मण पार्टी का संगठन एक विशेष घटना है और इसका पतन भी उतने ही खेद के साथ याद रखी जाने वाली एक घटना है । १९३७ के चुनाव में पार्टी क्यों एकदम धराशायी हो गयी , यह एक प्रश्न है , जिसे पार्टी के नेताओं को अपने से पूछना चाहिए। चुनाव से पहले लगभग २४ वर्ष तक मद्रास में अब्राह्मण-पार्टी ही शासनारूढ़ रही । इतने लम्बे समय तक गद्दी पर बैठे रहने के बावजूद अपनी किसी गलती के कारण पार्टी चुनाव के समय ताश के पत्तों की तरह उलट गई ? क्या बात थी जो अब्राह्मण-पार्टी अधिकांश अब्राह्मणों में ही अप्रिय हो उठी ? मेरे मत में इस पतन के दो कारण थे ।

पहला कारण यह है कि इस पार्टी के लोग इस बात को साफ नहीं समझ सके कि ब्राह्मण-वर्ग के साथ उनका क्या वैमनस्य है ? यद्यपि उन्होंने ब्राह्मणों की खुल कर आलोचना की,तो भी क्या उनमें से कोई कभी यह कह सका था कि उनका मतभेद सैद्धान्तिक है । उनके भीतर स्वयं कितना ब्राह्मणवाद भरा था । वे ’ नमम’ पहनते थे और अपने आपको दूसरी श्रेणी के ब्राह्मण समझते थे। ब्राह्मणवाद को तिलांजलि देने के स्थान पर वे स्वयं ’ब्राह्मणवाद’ की भावना से चिपटे हुए थे और समझते थे कि इसी आदर्श को उन्हें अपने जीवन में चरितार्थ करना है । ब्राह्मणों से उन्हें इतनी ही शिकायत थी कि वे उन्हें निम्न श्रेणी का ब्राह्मण समझते हैं । ऐसी कोई पार्टी किस तरह जड़ पकड़ सकती थी जिसके अनुयायी यह तक न जानते कि जिस पार्टी का वे समर्थन कर रहे हैं तथा जिस पार्टी का विरोध करने के लिए उनसे कहा जा रहा है ,उन दोनों में क्या-क्या सैद्धान्तिक मतभेद हैं । उसे स्पष्ट कर सकने की असमर्थता , मेरी समझ में , पार्टी के पतन का कारण हुई है ।

पार्टी के पतन का दूसरा कारण इसका अत्यन्त संकुचित राजनैतिक कार्यक्रम था। इस पार्टी को इसके विरोधियों ने ’नौकरी खोजने वालों की पार्टी ’ कहा है ।मद्रास के ’हिन्दू’ पत्र ने बहुधा इसी शब्दावली का प्रयोग किया है। मैं उसक आलोचना का अधिक महत्व नहीं देता क्योंकि यदि हम ’ नौकरी खोजने वाले ’ हैं, तो दूसरे भी हम से कम ’नौकरी खोजने वाले’ नहीं हैं । अब्राह्मण-पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रम में यह भी एक कमी अवश्य रही कि उसने अपनी पार्टी के कुछ युवकों के लिए नौकरी खोजना अपना प्रधान उद्देश्य बना लिया था। यह अपनी जगह ठीक अवश्य था। लेकिन जिन अब्राह्मण तरुणों को सरकारी नौकरियां दिलाने के लिए पार्टी बीस वर्ष तक संघर्ष करती रही, क्या उन अब्राह्मण तरुणों ने नौकरियाँ मिल जाने के बाद पार्टी को स्मरण रखा ? जिन २० वर्षों में पार्टी सत्तारूढ़ रही ; इस सारे समय में पार्टी गांवों में रहने वाले उन ९० प्रतिशत अब्राह्मणों को भुलाये रही, जो आर्थिक संकट में पड़े थे और सूदखोर महाजनों के जाल में फँसते चले जा रहे थे।

मैंने इन बीस वर्षों में पास किये गए कानूनों का बारीकी से अध्ययन किया है । भूमि-सुधार सम्बन्धी सिर्फ़ एक कानून को पास करने के अतिरिक्त इस पार्टी ने श्रमिकों और किसानों के हित में कुछ भी नहीं किया । यही कारण था कि ’ कांग्रेस वाले चुपके से ’ चीर हरण,कर ले गये।

ये घटनायें जिस रूप में घटी हैं , उन्हें देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। एक बात जो मैं आपके मन में बिठाना चाहता हूं, वह यह है कि आपकी पार्टी ही आपको बचा सकती है । पार्टी को अच्छा नेता चाहिए , पार्टी को मजबूत संगठन चाहिए , पार्टी को अच्छा प्लैट-फ़ार्म चाहिए ।





वर्ष 2007 से अब तक उत्तर प्रदेश राज्य में समस्त राजकीय कर्मचारियों को प्रोन्नति का अवसर मात्र इस लिये नहीं मिल सका है क्योंकि प्रोन्नति में आरक्षण लागू करने की नीति को सूबे के उच्च न्यायालय ने उचित नहीं माना था ।

यह उल्लेखनीय है कि प्रोन्नति में आरक्षण के लागू होने या न होने से प्रभावित होने वाले पदों की संख्या उपलब्ध पदों की मात्र 21 प्रतिशत ही है । यदि सरकार चाहती तो 21 प्रतिशत पदों को माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अधीन प्रोन्नति के लिये सुरक्षित रखते हुये शेष 79 प्रतिशत पदों पर सामान्य वरिष्ठता सूची से प्रोन्नति किये जाने की कार्यवाही की जा सकती थी परन्तु ऐसा नहीं किया गया ।

क्या यह 1944 में बाबा साहब डा0 भीमराव अंबेडकर जी के वक्तब्य में इंगित राजनैतिक दल के पराजित होने के संभावित कारणों के अनुरूप आचरण नहीं है? यह प्रकरण आपके सम्मुख सादर विचारार्थ प्रस्तुत है।

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

प्रबंधकीय विद्यालयों के शिक्षकों ओर अन्य राजकीय सेवकों की लोकतांत्रिक प्रास्थिति में भिन्नता।

हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही समस्त विधायी निर्णय लेने के लिये सक्षम हैं । आम जनता द्वारा निर्वाचन के माध्यम से इन जनप्रतिनिधियों का चयन किया जाता है परन्तु केन्द्रीय तथा राज्य दोनों स्तरों पर राज्य सभा तथा विधान परिषद के रूप में स्थायी उच्च सदन की व्यवस्था है। राज्य स्तर के उच्च सदन में स्थानीय निकायों तथा शिक्षकों के लिय निर्वाचन के माध्यम से पृथक-पृथक स्थान निर्धारित होते हैं। इस प्रकार प्रबंधकीय विद्यालयों के शिक्षकों के लिये राज्य के उच्च सदन में अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजने की स्पष्ट व्यवस्था होने से वह राजनैतिक रूप से अपनी स्वतंत्र राय को व्यक्त करने के लिये स्वतंत्र होता है तथा यथा समय अपनी स्वतंत्र राय के आधार पर अपना प्रतिनिधि चुनने हुये उसे विधान परिषद हेतु भेजता भी हैं परन्तु अन्य राज्य कर्मचारियों के पास निर्वाचन से संबंधित अपनी स्वतंत्र राय को व्यक्त करने का इस प्रकार का कोई प्लेटफार्म उपलब्ध नहीं है।

उल्टे किसी भी राज्य कर्मचारी को निर्वाचन संबंधी गतिविधि में संलिप्त होने पर राज्य कर्मचारी आचरण संहिता 1956 के अनुरूप उसे दोषी करार दिया जाता है। प्रबंधकीय विद्यालयों के शिक्षक जो राजकोश से वेतन/भत्ते प्राप्त करते हैं और अन्य राजकीय कर्मचारियों की प्रास्थिति में यह भेद राज्य में उनकी लोकतांत्रिक स्थिति को प्रभावित करता है।


लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की विभिन्न धारायें निर्वाचन से संबंधित अपराधों का वर्णन करती हैं । इसकी धारा 134 निर्वाचन से संबंधित पदीय कर्तव्य के निर्वहन से संबंधित है जिसकी धारा 134-(1) के अनुसार जो कर्मचारी निर्वाचन में संसक्त पदीय कर्तव्य के भंग में किसी कार्य का लोप या युक्तियुक्त हेतुक के बिना दोषी होगा तो वह जुर्माने से जो पांच सौ रूपये तक हो सकेगा, दण्डनीय होगा यह भी कि धारा 134-(1) के अधीन दण्डनीय अपराध संज्ञेय होगा। इसी धारा में
134(क) जोडकर राजकीय सेवकों के लिये निर्वाचन अभिकर्ता, मतदान अभिकर्ता या गणना अभिकर्ता के रूप में कार्य करने को अपराध की श्रेणी में रखते हुये इसके लिये शास्ति का प्राविधान किया गया है।

मूल धारा तथा शास्ति इस प्रकार है

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा (134क) निर्वाचन अभिकर्ता, मतदान अभिकर्ता या गणना अभिकर्ता के रूप में कार्य करने वाले राजकीय सेवकों के लिये शास्तिः-यदि सरका की सेवा में या कोई व्यक्ति किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के निर्वाचन अभिकर्ता या मतदान अभिकर्ता या गणन अभिकर्ता के रूप में कार्य करेगा , तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से , या दोनो से दण्डनीय होगा।

इस प्रकार अन्य राजकीय कर्मचारियों को जहां निर्वाचन कार्यो में सक्रिय भागीदारी के लिये दण्डित किये जाने की व्यवस्था है वही राजकीय शिक्षकों को अपना शिक्षक प्रतिनिधि चुनकर उच्च सदन में भेजे जाने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया निर्धारित है और मेरे विचार में इसके चलते उनकी प्रास्थिति राज्य सरकार के सम्मुख उच्च विचारण की होती है।

कदाचित इसीलिये राजकीय अध्यापक के सम्मुख आयी परेशानियों का संज्ञान लेकर राज्य सरकार उसे अनेक ऐसे अधिकार देने पर राजी हो जाती है जो अन्य राज्य कर्मचारियों को राज्य कर्मचारी आचरण संहिता 1956 के चलते प्राप्त नहीं हो सकते। एक ऐसे ही अधिकार की चर्चा करते हुये उत्तर प्रदेश राज्य के हालिया शासनादेश की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा जिसके अनुसार जनपद स्तरीय कैडर का होने के बावजूद अध्यापको को अपने मनचाहे जनपद में स्थानान्तरण हेतु आवेदन करने की स्वतंत्रता दी गयी है और इस व्यवस्था को पारदर्शी तथा शिक्षकों के लिये उत्पीडन रहित बनाने के लिये आन लाइन आवेदन करने की व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की गयी हैं। ...


राज्य सरकार के अन्य कर्मचारी और अधिकारीगण जो प्रदेश स्तरीय सेवा के सदस्य होते हैं उन्हें भी अपने मनचाहे जनपद में स्थानान्तरण हेतु आवेदन करने की स्वतंत्रता क्यों नहीं देनी चाहिये जबकि लोकतंत्र का चौथा खम्भा लगातार राजकीय कर्मचारियों के स्थानान्तरण को एक उद्योग की श्रेणी में वर्गीकृत करते हुये उसे कर्मचारियों के उत्पीडन का औजार घोषित करने पर उतारू है ??
यह बात कम से कम मेरी समझ में तो नहीं आती।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

महापौर मामले में सुनवाई कलेक्टर के क्षेत्राधिकार से परे

निर्वाचन प्रक्रिया शुरू हो जाने और
परिणाम घोषित हो जाने के बाद चुनाव संबंधी किसी
शिकायत पर फैसला करना जिला निर्वाचन अधिकारी
के अधिकार क्षेत्र से परे है। ऐसी शिकायतों का
निराकरण चुनाव याचिका के माध्यम से ही किया जा
सकता है।
कटनी महापौर
के चयन की प्रक्रिया जारी रहने के दौरान कामेन्द्र सिंह
ने अनुविभागीय दंडाधिकारी व संदीप जैन ने जिला
निर्वाचन अधिकारी कटनी के
समक्ष शिकायत की थी कि श्रीमती
निर्मला पाठक का नाम मतदाता
सूची में गलत ढंग से जोड़ा गया है,
शिकायत से व्यथित होकर श्रीमती
निर्मला पाठक ने उच्च न्यायालय में
याचिका दायर की थी। स पूर्ण तथ्यों
पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने यह व्यवस्था दी
कि निर्वाचन प्रक्रिया प्रारंभ हो जाने के बाद चुनाव
की वैधता से संबंधित शिकायतों को चुनाव याचिका
के माध्यम से ही चुनौती दी जा सकती है।
पूरा विवरण पढने के लिये नीचे दिये गये शब्ददूत डाट काम लिंक पर क्लिक करें
शब्ददूत डाट काम: महापौर मामले में सुनवाई कलेक्टर के क्षेत्राधिकार ...:

रविवार, 6 नवंबर 2011

विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी होने के लिए शासकीय निगमों और कंपनियों के कर्मचारियों के लिए पूर्व शर्तें

निर्वाचन की आहट अब बहुत करीब से आती हुयी सुनाई दे रही है सो निर्वाचन से जुडे अपराधों के बारे में पडताल करते हुये मेरी नजर आदरणीय दिनेश जी के तीसरे खंभे पर पडी जिसमें से निर्वाचन से जुडी कुछ खास खास खबरों को आपके साथ साझा कर रहा हूँ इसी कडी में पहला लिंक है-
तीसरा खंबा: विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी होने के लिए शासकीय निगमों और कंपनियों के कर्मचारियों के लिए पूर्व शर्तें

शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

लोकतांत्रिक कुंभ की पवित्रता बनाये रखने के लिये मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने विगुल फूंक दिया है।

निर्वाचन आयोग के निर्देश



समूचे देश में इस लोकतांत्रिक कुंभ का संचालन करने वाले शीर्ष शंकराचार्य ने राज्यों में स्थापित अपने मठों (कार्यालयों ) में भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी के रूप में अपने अपने प्रतिनिधि शंकराचार्य को नियुक्त कर रखा है जो इस महाकुंभ के निष्पक्ष और पवित्रता के लिये सभी जरूरी उपायों को बेरोकटोक अमल में लाते हैं।

इन्हीं उपायों में से प्राथमिक उपाय होता है कि पूरे प्रदेश में अधिकारियों को बदल दिया जाय ताकि निकट भविष्य में प्रतीक्षित लोकतांत्रिक कुंभ के संचालन हेतु निष्पक्ष भूमि तैयार की जा सके। निर्वाचन आयोग ने अनेक अवसरों पर यह घोषित भी किया है कि आई0 ए0 एस0 सहित अन्य सिविल और राजस्व सेवा के अधिकारी ही उसकी आंखें और कान होते हैं। इन निर्देशों ने मुझे भी आनन फानन में कलक्ट्रªट लखनऊ में दाखिल होने के अवसर को उपलब्ध करा दिया है।

आने वाले वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश में इस लोकतांत्रिक कुंभ की पवित्रता बनाये रखने के लिये प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इस कुंभ की तैयारी का विगुल विगत 29 सितम्बर को फूंक दिया है। इस दिन से लगातार पूरे माह तक लोकतांत्रिक कुंभ में डुबकी लगाकर पुण्य के भागी बनने वाले प्रत्येक भक्त के लिये अनिवार्य पंजीकरण के द्वार खोले गये थे।
दिनांक 1 जनवरी 2012 को अट्ठारह वर्ष की उम्र प्राप्त करने वाले प्रदेश के प्रत्येक नागरिक को इस कुंभ में डुबकी लगवाने के लिये सुनिश्चित पंजीकरण करने की व्यवथा इस महाकुंभ के शंकराचार्य अर्थात मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने की है।
आज इस विषेश पुनरीक्षण अभियान में अपने दावे प्रस्तुत कर विधान सभा चुनाव से पहले मतदाता सूचि में नाम जुडवाने का अंतिम अवसर हे

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

अर्जित भूमि के प्रतिकर और पुर्नवासन की अनियमितता में होगी तीन साल की सजा

पिछली पोस्ट में हमने इस विषय पर चर्चा की थी कि किस प्रकार लोक प्रयोजन एवं कम्पनियों दोनों के लिये भूमि का अधिग्रहण कब्जा हस्तान्तरण एवं प्रतिकरण निर्धारण के सम्बन्ध में 1 मार्च 1984 को ‘भूमि अध्याप्ति अधिनियम 1894’ के द्वारा व्यापक प्रविधान किये गये थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद अनेक अन्य अधिनियम की भाँति इस अधिनियम में भी भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय कानून के रूप में अंगीकार किया गया।

परन्तु इधर भूमि अधिग्रहण के प्रकरणों के विरूद्ध बढती किसानों की आक्रामक भूमिका ने भारत सरकार को एक नया भूमि अध्याप्ति अधिनियम बनाये जाने के लिये विवश किया है जिसमें किसानों के हितो के प्राविधान तो हों ही, साथ ही किसानों को देय प्रतिकर के मामलों में अनियमितता करने वालों के विरूद्ध समुचित दण्डात्मक कार्यवाही की भी संभावना हो।

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध किसानो की आक्रामक भूमिका की पडताल

पश्चिम बंगाल का सिंगूर का किसान हो या उत्तर प्रदेश के नोएडा का किसान, भूमि अधिग्रहण के मामले पर सरकार के विरूद्ध सभी एक जैसी आक्रामक भूमिका में ही क्यों दिखलायी पडते हैं? इस प्रश्न का उत्तर तलाशते हुये मैं उत्तर प्रदेश के अनेक मंडलों में भूमि अधिग्रहण संबंधी कार्य देखने वाले अपने एक सहयोगी अधिकारी तक जा पहुँचा जो नवगठित उत्तराखंड राज्य के औद्योगिक हब रूद्रपुर, सिडकुल सहित अनेक उपखंडो में उपजिलाधिकारी/भूमि अध्याप्ति अधिकारी के रूप मे तनावरहित वातावरण निर्मित करते हुये भूमि अधिग्रहण का संचालन सफलता पूर्वक कर चुके हैं।
श्री सिंह भूमि अधिग्रहण कानून के बारे में बताते हुये उसे उद्गम तक जा पहुँचे जहाँ मैने इस कानून के प्रयोग में लाये जाने पर उत्पन्न होने वाले जनाक्रोश को भाँपाने का प्रयास किया। मैं संभवतः कुछ हद तक इस इसे भाँप पाया हूँ। अब आपके साथ इस कोशिश के साथ साझा कर रहा हूँ कि शायद आप भी उसे भाँप सकें।

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

उत्तर प्रदेश के राज्य कर्मचारियों की प्रोन्नति की राह रोककर खडा एक एम नागराजा! !

क्या आपको मालूम है कि यदि हम हाल ही हुयी उत्तर प्रदेश राज्य की पुलिस में बडी मात्रा में हुये आउट आफ टर्न प्रोन्नतियों को छोड दें तो उत्तर प्रदेश के शेष राज्य कर्मचारियों की प्रोन्नति की राह रोककर एक नाग खडा हो गया है । यह नाग है माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा परित एम नागराजा का एक निर्णय?

आइये आपको इस नाग का विस्तृत परिचय करवाते हैं जिसके कारण वर्ष 2011 उत्तर प्रदेश के राजकीय कर्मचारियों के लिये अब तक प्रोन्नति शून्य वर्ष ही रहा है।
ममला यह है कि इस प्रदेश में राजकीय कर्मचारियों की प्रोन्नति संबंधी नियमावली को उत्तरप्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ के द्वारा दिनांक 4 जनवरी 2011 को असंवैधानिक करार दे दिया गया था।

सोमवार, 26 सितंबर 2011

पदोन्नति में आरक्षण पर एम. नागराजन का फैसला लागू क...

पदोन्नति और नियुक्ति में आरक्षण के संबंध में राजस्थान राज्य की व्यवस्था और उच्च न्यायालय राजस्थान के निर्देशों कें संबंध में एक रोचक चर्चा प्रकाश में आयी है जिसे आपसे साझा करने के लिये निम्न लिंक पर चटका लगायें

जयपुर. राज्य मंत्रिमंडल की देर रात हुई बैठक में पदोन्नति में आरक्षण के मामले में एम नागराजन का फैसiला लागू करने पर सहमति जताई गई। ...:

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

उपग्रह से भेजी गयी तरंगों की सहायता से निर्धारित की जायेंगी सीमाऐं

बहुत समय नहीं बीता है जब सारे संसार ने देखा कि अमेरिका ने अपने सुग्राही यंत्रों के माध्यम से संसार में आतंक का पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन का ठीक ठीक ठिकाना ढूँढकर उसे समाप्त कर डाला था। अमेरिका के समूचे मिशन में आतंकवादी की ठीक ठीक स्थिति ज्ञात कर पाने में उसके द्वारा अंतरिक्ष में नेविगेशन उपग्रहो का योगदान रहा । अमेरिका द्वारा पृथ्वी के चारों ओर अट्ठाइस नेविगेशन उपग्रह इस प्रकार छोडे गये हैं कि वे संसार के समूचे भाग पर नजर रख सकते हैं। इनकी कार्यप्रणाली ऐसी है कि संसार के प्रत्येक स्थान पर एक समय में न्यूनतम चार उपग्रहो से संकेत हर परिस्थिति में प्राप्त होते रहते हैं। इन्ही पा्रप्त संकेतों के माध्यम से पृथ्वी पर स्थित किसी वस्तु की ठीक ठीक स्थिति ज्ञात की जा सकती है।

चित्र 1 राजस्व परिषद में आयोजित भूअभिलेख आधुनिकीकरण कार्यशाला

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

क्या यह प्रोन्नति के पदों पर आरक्षण प्राविधान लागू करने हेतु उच्चतम न्यायालय की सैद्धांतिक स्वीकृति है?


बीते ब्रहस्पति वार को भारतीय उच्चतम न्यायालय ने ग्रेड अपग्रेडेशन में आरक्षण प्राविधानों को लागू किये जाने को असंवैधानिक मानते हुये एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। इस फैसले में प्रोन्नति में आरक्षण विषय पर अपना मंतब्य स्पस्ट करते हुये कहा गया है कि ‘‘......पद अपग्रेडेशन नियुक्ति अथवा पदोन्नति से जुडा हुआ विषय नहीं है.....इसलिये इसमें आरक्षण लागू नहीं हो सकता.....’’




बुधवार, 31 अगस्त 2011

अब जब 25 पैसे चलन में ही नहीं रहे तो शुल्क 50 पैसे के गुणक में होना चाहिये ना।

इस पर आपकी चर्चा आमंत्रित है
भारतीय सिनेजगत में चवन्नी उछाल कर दिल माँगने का सिलसिला बहुत पुराना रहा है परन्तु भारत सरकार ने बीते एक माह से चवन्नी का चलन ही बंद कर दिया है। ऐसी हालत में अब भारतीय टकसाल में ढलने वाली सबसे छोटी मुद्रा अठन्नी होगी। अब चवन्नी उछाल कर दिल माँगने वाला सिने जगत सीधे सीधे चेक माँगता हुआ नजर आ रहा है (याद करें अदनान सामी) परन्तु असली लाचारी उन ऐतिहासिक दस्तावेजों की है जो सिर्फ चवन्नी के बारे में ही लिखे गये थे। इस संबंध में साहित्यिक और सिने जगत ने तो अपने अपने तरीके से इसका हल निकाल लिया है परन्तु विधिक प्राविधानो पर नजर दौडाने पर हाल ही में एक रोचक तथ्य संज्ञानित हुआ है।
किसी कार्य से भारतीय स्टाम्प अधिनियम 1899(यथासंशोधित) के प्राविधानों को पढने की आवश्यकता उत्पन्न हुयी। इस केन्द्रीय अधिनियम की एक धारा ने मेरा ध्यान आकर्षित किया जो इस प्रकार थीः-

घारा 78ः- अधिनियम का अनुवाद तथा सस्ते दाम पर बिक्री- प्रत्येक राज्य सरकार अपने द्वारा शासित क्षेत्रार्न्तगत अधिकतम पच्चीस नये पैसे (शब्द ‘पच्चीस नये पैसे’ 1958 में प्रतिस्थापित) प्रति की दर पर प्रभुख भाषा में इस अधिनियम के अनुवाद की बिक्री के लिये प्राविधान बनायेगी।

(मूल धारा अंग्रेजी मे है यहाँ उसका अनुवाद प्रस्तुत है)

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

ऊपर राज्यपाल, नीचे लेखपाल बाकी सब देखभाल,

ग्रामीण जीवन में सबसे निचले स्तर के इस राजस्व कर्मी लेखपाल की महत्ता का अंदाजा आप उपर लिखी कहावत से आसानी से लगा सकते है। अपने प्रदेश में राजस्व विभाग में कार्यरत सबसे निचले स्तर के राजस्व कर्मी लेखपाल के संबंध में उपर लिखी कहावत सामान्य रूप से कही और सुनी जाती रही है। सन् 1973 से पूर्व उत्तर प्रदेश में इस राजस्व कर्मी का नाम ‘पटवारी’ हुआ करता था। इस पदनाम की छबि आम जनता में अच्छी न होने के कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह जी के द्वारा ऐतिहासिक निर्णय लेते हुये इस पदनाम के स्थान पर इसे ‘लेखपाल’ का पदनाम दिया गया था। देश के अनेक राज्यों में आज भी राजस्व विभाग की सबसे निचली पायदान पर विराजमान इस महत्वपूर्ण कर्मी को पटवारी ही कहा जाता है। राजस्थान राज्य में ऐसे राज्यों की श्रेणी में है जिसमें आज भी सबसे निचले स्तर के राजस्व कर्मी को इसी नाम ‘पटवारी’ से संबोधित किया जाता है। पटवारी पदनाम के संबंध में एक रोचक चर्चा तीसरा खंभा में की गयी है जिसे जानने के लिये आगामी लिंक को क्लिक करें।
तीसरा खंबा: राजस्थान में कृषिभूमि का नामान्तरण

सोमवार, 15 अगस्त 2011

1मार्च 1931 का समाचार पत्र जिसमें चन्द्रशेखर आजाद की मृत्यु के समाचार के साथ तहसीलदार की हत्या का भी समाचार छपा था


स्वतंत्रता दिवस को छुट्टी का दिवस के स्थान पर गंभीर चर्चा दिवस क्यों नहीं मानते हम लोग?

आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस के दो दिन पूर्व यानी 21 जुलाई की बात थी मै एक आवश्यक राजकीय कार्य के चलते उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले शहर इलाहाबाद गया हुआ था। थोडा समय बचा तो इलाहाबाद राजकीय पुस्तकालय पहुँच गया।
पुस्तकालय में पुराने समाचार पत्रों में आजादी के नायक चंद्रशेखर आजाद के संबंध में छपी खबरों को ढूँढकर उसके चित्रों के साथ एक आलेख बनाने की योजना थी। (इससे संबंधित पोस्ट 23 जुलाई 2011 को कोलाहल से दूर... ब्लाग पर जारी हुयी थी जिसे आप सबका भरपूर सम्मान और समर्थन मिला था)
आजाद जी की खबरों वाले समाचार पत्र का छायाचित्र लेने के दौरान ही उसी समाचार पत्र में छपी एक खास खबर पर निगाह अटक गयी। जिस दिन चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद के एन्फेड पार्क में घेरकर पुलिस द्वारा आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया गया था उसी दिन समीपवर्ती जनपद फतेहपुर मे सरकारी धनराशि की वसूली हेतु पहुँचे एक सरकारी अधिकारी (तहसीलदार) को लाठी डंडों से पीट पीट कर मार डाला गया था। आजाद जी की मृत्यु के साथ यह समाचार भी समाचार पत्र के मुख्यपृष्ठ पर ही छापा गया था।

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

सुधार विलेख (Correction Deed) निष्पादित करने से मना करने पर विक्रेता के विरुद्ध विशिष्ठ अनुपालन का वाद


उत्तर प्रदेश में भू राजस्व की वसूली हेतु भूअभिलेखों को अद्यतन रखने हेतु जिलाधिकारी को उत्तरदायी बनाया गया है। इस हेतु भू राजस्व अधिनियम 1901 के प्रविधान प्रदेश में लागू है जिसकी धारा 34 भूअधिलेखों में नामान्तरण की ब्यवस्था देती है । इस धारा के तहत किसी भी प्रकार से भूमि पर कब्जे के परिवर्तन के लिये तहसीलदार द्वारा नामान्तरण वादों की सुनवयी के आधार पर नामान्तरण आदेश पारित किये जाते हैं । अनेक अवसरों पर बैनामें में त्रुटि होने से नामान्तरण आदेश जारी होने में अडचन आती है , ऐसी स्थिति में क्रेता सुधार विलेख निष्पादित कराता है जिसके संबंध में एक रोचक चर्चा तीसरा खंभा पर की गयी है । आप सभी सुधी पाठकों के लिये उसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ कृपया विस्तृत विवरण पढने के लिये लिंक पर क्लिक करें।
तीसरा खंबा: सुधार विलेख (Correction Deed) निष्पादित करने से मना करने पर विक्रेता के विरुद्ध विशिष्ठ अनुपालन का वाद

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

‘‘पसंद नापसंदगी को तलाक के मुकदमों का आधार नहीं बनाया जा सकता’’

अचानक यहाँ लखनऊ में एक ऐसी खबर आयी है जो भारतीय नारी के लिये अच्छी है सो आज की पोस्ट में उसे दे रहा हूँ । हाँलांकि इसमें पुरूषों के प्रति कुछ ज्यादती नजर आती है लेकिन यह चर्चा आप सब सुधी पाठक जनों पर छोडते हुये खबर का आनंद लें।


जी हाँ ! लखनऊ के उच्च न्यायालय में एक डाक्टर दंपत्ति के तलाक संबंधी मुकदमे में न्यायालय ने कुछ ऐसी ही व्यवस्था दी है। इस निर्णय ने जहाँ एक ओर विवाहित हिन्दू महिला के अधिकारों को मजबूती प्राप्त होने के साथ साथ विवाह विच्छेद के आधारों को नये सिरे से परिभाषित करने जैसा कार्य किया है वहीं दूसरी ओर पत्नियों के अत्याचार से पीड़ित पतियों की दशा ‘‘जबरिया मारे रोने न दे ’’जैसी भी कर दी है।

बुधवार, 3 अगस्त 2011

पति की मृत्यु पर उस की पैतृक संपत्ति में पत्नी को उत्तराधिकार प्राप्त होगा


उत्तर प्रदेश में लागू भूमि संबंधी जमींदारी विनाश अधिनियम 1950 में पति की मृत्यु पर मृतक की कृषि भूमि हेतु उसकी पत्नी को पुत्रों के साथ समान रूप से उत्तराधिकारिणी माना गया है । यहां पति की मृत्यु पर उसकी पत्नी को मिलने वाले संपत्ति के अधिकार के संबंध में एक रोचक चर्चा तीसरा खंभा पर की गयी है । आप सभी सुधी पाठकों के लिये उसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ कृपया विस्तृत विवरण पढने के लिये लिंक पर क्लिक करें।
तीसरा खंबा: पति की मृत्यु पर उस की पैतृक संपत्ति में पत्नी को उत्तराधिकार प्राप्त होगा

सोमवार, 25 जुलाई 2011

पंजीकृत दत्तक ग्रहण और वसीयत में से क्या मान्य होगा?


1972 में मेरे भाई का पंजीकृत गोदनामा हुआ था, लेकिन वह हमेशा अपने प्राकृतिक पिता के साथ ह रहा। उस के सारे दस्तावेजों (शिक्षा, मतदाता पहचान पत्र आदि) में उस के प्राकृतिक पिता का ही नाम पिता के रूप में दर्ज है न कि दत्तक ग्रहण करने वाले पिता का। 2001 में दत्तक पिता ने मेरे चाचा के पुत्रों के नाम पंजीकृत वसीयत कर दी, जिस में दत्तक का उल्लेख नहीं है। दत्तक ग्रहण करने वाले पिता के देहान्त के उपरांत उस का दाह संस्कार भी चाचा के पुत्रों ने ही किया, दत्तक पुत्र ने नहीं। अब नामांतरण का वाद चल रहा है। दत्तक ग्रहण में माता की स्वीकृति नहीं है। यह बताने का कष्ट करें कि दत्तक पुत्र या वसीयती में किस का दावा मजबूत है?तीसरा खंबा: पंजीकृत दत्तक ग्रहण और वसीयत में से क्या मान्य होगा?

बुधवार, 6 जुलाई 2011

राजस्व रिकार्ड में दर्ज भूमि में क्या बहन विभाजन मांग सकती है?


तीसरा खंबा: राजस्व रिकार्ड में मेरे नाम दर्ज भूमि में क्या मेरी बहन विभाजन मांग सकती है?

कोई वसीयत न करने पर हिन्दू स्त्री की संपत्ति उत्तराधिकार में किसे प्राप्त होगी?

तीसरा खंबा: कोई वसीयत न करने पर हिन्दू स्त्री की संपत्ति उत्तराधिकार में किसे प्राप्त होगी?

: पत्नी के पूर्व पति से उत्पन्न संतान का संपत्ति का अधिकार और उत्तराधिकार

तीसरा खंबा: पत्नी के पूर्व पति से उत्पन्न संतान का संपत्ति का अधिकार और उत्तराधिकार

क्या है वसीयत? वसीयत कैसे करें?


तीसरा खंबा: क्या है वसीयत? वसीयत कैसे करें?

रविवार, 3 जुलाई 2011

क्या मैं सरकारी नौकरी में रहते हुए काव्य गोष्ठियों में भाग ले सकता हूँ?


राजकीय कर्मचारी कवि गोष्ठियों में भाग ले सकता है अथवा नहीं इससे संबंधित एक रोचक लेखमाला तीसरा खंभा ब्लाग पर प्रकशित हुयी थ्ी जिसे आप सभी पाठकजनों के लिये यहां साझा कर रहा हूं
इस विषय पर तीसरा खंबा में चार आलेख हाल ही में प्रकाशित किए गए थे। इन में यह चर्चा की गई थी कि सरकारी कर्मचारी क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते। ये चारों आलेख ...
(1) सरकारी/ अर्धसरकारी कर्मचारी क्या क्या नहीं कर सकते?;
(2) कर्मचारियों के आचरण नियम क्यों नहीं आम किए जाते? ..... भाग-2;
(3) सरकारी कर्मचारी किन किन गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता ... भाग-3 तथा
(4) सरकारी कर्मचारी प्रकाशन, प्रसारण में कब और किस सीमा तक भाग ले सकते हैं?... भाग-4 आप को पढ़ लेने चाहिए। इस से आप को समझने में मदद मिलेगी कि आप एक सरकारी कर्मचारी होने पर क्या कर सकते हैं और क्या नहीं।

आप के कविता लिखने पर और कवि गोष्ठियों में भाग लेने पर भी किसी तरह का कोई प्रतिबंध नहीं है। आप ब्लाग, समाचार पत्र और पत्रिकाओं में भी लिख सकते हैं यदि आप का लेख, रचना या अन्य सामग्री साहित्यिक, कलात्मक, या वैज्ञानिक प्रकार की हो, और उस में ऐसा कोई मामला न हो जिसे किसी कानून, नियम या उपनियम के अंतर्गत सरकारी कर्मचारी द्वारा प्रकट करना निषेध कर दिया गया हो। इस के लिए आप को राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए बनाए गए आचरण नियम भी अवश्य पढ़ लें।
तीसरा खंबा: क्या मैं सरकारी नौकरी में रहते हुए काव्य गोष्ठियों में भाग ले सकता हूँ?

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

नायब तहसीलदार ने नामांतरण आदेश


केवलकृण question

एक मामले म एक पकार के प म नायब तहसीलदार ने नामांतरण आदेश जार कया, लेकनदूसरे प क आपय के बाद तहसीलदार ने यह कहते हुए रकाड यथावत रखने का आदेश दया क नायब तहसीलदार वभागीय परा उीण नहं थे। तहसीलदार ने पहले प के नामांतरण आवेदनक पुनः सुनवाई क और अंततः उसका आवेदन खारज हो गया। साथ ह उसे सलाह द क सतव क उोषणा के िलए वह िसवल कोट जा सकता है। पहले प ने एसडओ कोट म अपील क, लेकन वहां भीe उसक अपील खारज हो गई। साथ ह कोट ने िमयाद अिधिनयम के तहत दए गए उसके तक से भी असहमित य क। पहले प ने दूसर अपील अपर कलेटर के यायालय म क, वहां दूसर अपील वीकार करते हुए दोन िनन
यायालय के आदेश को खारज कर दया गया। इधर दूसरे प ने अपर कलेटर के फैसले के खलाफ राजव मंडल म अपील क जहां मुकदमा जार है। इस पूरे मामले म पहले प का सव संदध है और वह अपने प म कोई उोषणा या टे ा नहं कर पाया है। वह दूसरे प के सव को वीकार करता है, उसे चुनौती नहं देता। बक दूसरे प के साथ अपना भी नामांतरण चाहता है। इस बीच दूसरा प, जसका सव प है, एक भूिम म फौती के िलए तहसीलदार के यायालय म आवेदन करता है। पहले प ने यायालय म तक दया है क इसी भूिम से संबंिधत वाद राजव मंडल म लंबत है, अतः दूसरे प का फौती आवेदन खारज कया जाना चाहए। दूसरे प का तक है क उसका सतव प है, और कोई टे भी नहं है, इसिलए फौती आवेदन का िनराकरण कया जाना चाहए। यह है क या तहसीलदार इन परिस◌्थय म फौती आवेदनका िनराकरण कर सकता है। या इसके िलए कोई याियक ांत है। Rep

"हद विध चचा समूह फौती नामांतरण" by राकेश शेखावत Rakesh शेखावत Shekh राकेश शेखावत Rakesh शेखावत Shekhawat Viewrofile More
केवल कृण जी, नमकार। वतुतः नामातकरण एक वय देयता तय करने कराजव या है। जो राय सरकार लगान वसूली के िलए अपनाती है। लेकन यह भी सच है क इसे मा वय एवं शासिनक मामला माना जाना भी ठक नहं है यक वतुतः अिधकार अिभलेख को आदनांक(चकंजम) करने का मूलभूत आधार यह होता है। चूँक आपके मामले म वव का वमान है जसके सबंध म शीष राजव यायालय म मामला लबत है ऐसे म मामले का अतम प से िनतारण होने तक, चाहे मामले म कसी कार का कोई टे ना हो, तहसीलदार महोदय ारा नामातकरण खोला जाना कसी भी कार से सुसंगत एवं संभव नहं लगता। अछा हो आप तीय पकार को सम यायालय म घोषणा का वाद तुत करने

मंगलवार, 14 जून 2011

तीसरा खंबा: सरकारी/अर्धसरकारी कर्मचारी क्या क्या नहीं कर सकते?

तीसरा खंबा: सरकारी/अर्धसरकारी कर्मचारी क्या क्या नहीं कर सकते?

कर्मचारियों के आचरण नियम.. भाग-2

तीसरा खंबा: कर्मचारियों के आचरण नियम क्यों नहीं आम किए जाते? ..... भाग-2

सरकारी कर्मचारी प्रकाशन कब और किस सीमा तक भाग ले सकते हैं?.

तीसरा खंबा: सरकारी कर्मचारी प्रकाशन, प्रसारण में कब और किस सीमा तक भाग ले सकते हैं?... भाग-4

रविवार, 12 जून 2011

तीसरा खंबा: सरकारी कर्मचारी किन किन गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता ... भाग-3

तीसरा खंबा: सरकारी कर्मचारी किन किन गतिविधियों में भाग नहीं ले सकता ... भाग-3

रूपान्तरण [कविता]- अशोक कुमार शुक्ला |साहित्य शिल्पी: Sahitya Shilpi; Hindi Sahitya ki Dainik patrika

रूपान्तरण [कविता]- अशोक कुमार शुक्ला साहित्य शिल्पी: Sahitya Shilpi; Hindi Sahitya ki Dainik patrika

रविवार, 22 मई 2011

उत्तर प्रदेश के राजस्व अधिकारियों का ए0 सी0 पी0 का लाभ



उत्तर प्रदेश के राजस्व अधिकारियों का ए0 सी0 पी0 का लाभ अनुमन्य जिसका विस्तृत आदेश की प्रति आप इस ब्लाग से डाउनलोड कर कर सकते हैं

अशोक कुमार शुक्ला

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