शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

लोकतांत्रिक कुंभ की पवित्रता बनाये रखने के लिये मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने विगुल फूंक दिया है।

निर्वाचन आयोग के निर्देश



समूचे देश में इस लोकतांत्रिक कुंभ का संचालन करने वाले शीर्ष शंकराचार्य ने राज्यों में स्थापित अपने मठों (कार्यालयों ) में भी मुख्य निर्वाचन अधिकारी के रूप में अपने अपने प्रतिनिधि शंकराचार्य को नियुक्त कर रखा है जो इस महाकुंभ के निष्पक्ष और पवित्रता के लिये सभी जरूरी उपायों को बेरोकटोक अमल में लाते हैं।

इन्हीं उपायों में से प्राथमिक उपाय होता है कि पूरे प्रदेश में अधिकारियों को बदल दिया जाय ताकि निकट भविष्य में प्रतीक्षित लोकतांत्रिक कुंभ के संचालन हेतु निष्पक्ष भूमि तैयार की जा सके। निर्वाचन आयोग ने अनेक अवसरों पर यह घोषित भी किया है कि आई0 ए0 एस0 सहित अन्य सिविल और राजस्व सेवा के अधिकारी ही उसकी आंखें और कान होते हैं। इन निर्देशों ने मुझे भी आनन फानन में कलक्ट्रªट लखनऊ में दाखिल होने के अवसर को उपलब्ध करा दिया है।

आने वाले वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश में इस लोकतांत्रिक कुंभ की पवित्रता बनाये रखने के लिये प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इस कुंभ की तैयारी का विगुल विगत 29 सितम्बर को फूंक दिया है। इस दिन से लगातार पूरे माह तक लोकतांत्रिक कुंभ में डुबकी लगाकर पुण्य के भागी बनने वाले प्रत्येक भक्त के लिये अनिवार्य पंजीकरण के द्वार खोले गये थे।
दिनांक 1 जनवरी 2012 को अट्ठारह वर्ष की उम्र प्राप्त करने वाले प्रदेश के प्रत्येक नागरिक को इस कुंभ में डुबकी लगवाने के लिये सुनिश्चित पंजीकरण करने की व्यवथा इस महाकुंभ के शंकराचार्य अर्थात मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने की है।
आज इस विषेश पुनरीक्षण अभियान में अपने दावे प्रस्तुत कर विधान सभा चुनाव से पहले मतदाता सूचि में नाम जुडवाने का अंतिम अवसर हे

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

अर्जित भूमि के प्रतिकर और पुर्नवासन की अनियमितता में होगी तीन साल की सजा

पिछली पोस्ट में हमने इस विषय पर चर्चा की थी कि किस प्रकार लोक प्रयोजन एवं कम्पनियों दोनों के लिये भूमि का अधिग्रहण कब्जा हस्तान्तरण एवं प्रतिकरण निर्धारण के सम्बन्ध में 1 मार्च 1984 को ‘भूमि अध्याप्ति अधिनियम 1894’ के द्वारा व्यापक प्रविधान किये गये थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद अनेक अन्य अधिनियम की भाँति इस अधिनियम में भी भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय कानून के रूप में अंगीकार किया गया।

परन्तु इधर भूमि अधिग्रहण के प्रकरणों के विरूद्ध बढती किसानों की आक्रामक भूमिका ने भारत सरकार को एक नया भूमि अध्याप्ति अधिनियम बनाये जाने के लिये विवश किया है जिसमें किसानों के हितो के प्राविधान तो हों ही, साथ ही किसानों को देय प्रतिकर के मामलों में अनियमितता करने वालों के विरूद्ध समुचित दण्डात्मक कार्यवाही की भी संभावना हो।

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

भूमि अधिग्रहण के विरूद्ध किसानो की आक्रामक भूमिका की पडताल

पश्चिम बंगाल का सिंगूर का किसान हो या उत्तर प्रदेश के नोएडा का किसान, भूमि अधिग्रहण के मामले पर सरकार के विरूद्ध सभी एक जैसी आक्रामक भूमिका में ही क्यों दिखलायी पडते हैं? इस प्रश्न का उत्तर तलाशते हुये मैं उत्तर प्रदेश के अनेक मंडलों में भूमि अधिग्रहण संबंधी कार्य देखने वाले अपने एक सहयोगी अधिकारी तक जा पहुँचा जो नवगठित उत्तराखंड राज्य के औद्योगिक हब रूद्रपुर, सिडकुल सहित अनेक उपखंडो में उपजिलाधिकारी/भूमि अध्याप्ति अधिकारी के रूप मे तनावरहित वातावरण निर्मित करते हुये भूमि अधिग्रहण का संचालन सफलता पूर्वक कर चुके हैं।
श्री सिंह भूमि अधिग्रहण कानून के बारे में बताते हुये उसे उद्गम तक जा पहुँचे जहाँ मैने इस कानून के प्रयोग में लाये जाने पर उत्पन्न होने वाले जनाक्रोश को भाँपाने का प्रयास किया। मैं संभवतः कुछ हद तक इस इसे भाँप पाया हूँ। अब आपके साथ इस कोशिश के साथ साझा कर रहा हूँ कि शायद आप भी उसे भाँप सकें।

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

उत्तर प्रदेश के राज्य कर्मचारियों की प्रोन्नति की राह रोककर खडा एक एम नागराजा! !

क्या आपको मालूम है कि यदि हम हाल ही हुयी उत्तर प्रदेश राज्य की पुलिस में बडी मात्रा में हुये आउट आफ टर्न प्रोन्नतियों को छोड दें तो उत्तर प्रदेश के शेष राज्य कर्मचारियों की प्रोन्नति की राह रोककर एक नाग खडा हो गया है । यह नाग है माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा परित एम नागराजा का एक निर्णय?

आइये आपको इस नाग का विस्तृत परिचय करवाते हैं जिसके कारण वर्ष 2011 उत्तर प्रदेश के राजकीय कर्मचारियों के लिये अब तक प्रोन्नति शून्य वर्ष ही रहा है।
ममला यह है कि इस प्रदेश में राजकीय कर्मचारियों की प्रोन्नति संबंधी नियमावली को उत्तरप्रदेश के माननीय उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ के द्वारा दिनांक 4 जनवरी 2011 को असंवैधानिक करार दे दिया गया था।

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