सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

राजकीय कर्मचारी को किसी पुस्तक के प्रकाशन के लिये किस नियम के अंतरगत राजकीय अनुमति की आवश्यकता होती है।

उत्तर प्रदेश राजकीय कर्मचारियों की आचरण नियमावली 1956 के नियम 15 के अधीन राजकीयकर्मचारियों द्वारा ऐसी साहित्यिक, कलात्मक, और वैज्ञानिक किस्म की रचनाओं के प्रकाशन के लिये सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है जिनमें उनके सरकारी कार्य से सहायता नहीं ली गई है और प्रकाशित के आधार पर स्वामित्व ( रायल्टी ) स्वीकार करने का प्रस्ताव नहीं किया गया है। किन्तु सरकारी कर्मचारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रकाशनों में उन शर्तो का कढाई से पालन किया गया है जिनका उल्लेख अग्रेतर प्रस्तरों मे किया गया है साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उसके प्रकाशनों से सरकारी कर्मचारियों की आचरण नियमावली के उपबन्धों का उल्लंघन नहीं होता है।
किन्तु उन सभी दशाओं में सरकार की पूर्व स्वीकृति लिये जाने की आवश्यकता है जिनमें लगातार के आधार पर स्वामित्व (रायल्टी) प्राप्त करने का प्रस्ताव हो। इस प्रकार की अनुमति देते समय रचना के पाठ्य पुस्तक के रूप में नियत किये जाने और ऐसी ही दशा में सरकारी पद के दुरूपयोग होने की सम्भावना पर भी विचार किया जाना चाहिये।


क्या करें यदि प्रकाशित के आधार पर स्वामित्व ( रायल्टी ) स्वीकार करने का प्रस्ताव हो

रायल्टी राज्य सरकार द्वारा यह निश्चित किया गया है कि विशुद्ध रूप से साहित्यिक , कलात्मक, और वैज्ञानिक किस्म की रचनाओं से भिन्न रचनाओं के प्रकाशन की दशा में पुस्तकें लिखने तथा प्रकाशित करने और उनके लिये स्वामित्व ( रायल्टी ) स्वीकार करने की अनुमति निम्नलिखित शर्तों पर दी जायेगी

1 पुस्तक पर सरकार की मुद्रणानुज्ञप्ति (¼ imprimature ½ ) अंकित न हो।

2 पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर लेखक का नाम दिया गया हो पर उसके साथ उसका सरकारी पदनाम न दिया गया हो किन्तु पुस्तक के बहिरावरण ( dust-cover ) पर जिसमें जनता को लेखक का परिचय दिया जाता है सरकारी पदनाम देने में कोई आपत्ति नहीं है।

3 लेखक पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर अथवा किसी अन्य उपयुक्त स्थल पर अपने नाम से यह उल्लेख कर दे कि पुस्तक में वर्णित लेखक के विचारों और टीकाटिप्पणियों की पूरी जिम्मेदारी लेखक की है और पुस्तक के प्रकाशन से सरकार का कोई संबंध नहीं है।

4 लेखक को यह बात भी सुनिश्चित करनी चाहिये कि पुस्तक में तथ्य अथवा मत सम्बन्धित कोई ऐसा कथन नहीं है जिसमें राज्य सररकार या केन्द्रीय सरकार अथवा किसी अन्य सरकार या स्थानीय प्राधिकारी की किसी वर्तमान अथवा हाल की नीति की कोई प्रतिकूल आलोचना की गयी है।

5 सरकारी कर्मचारियों को उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकों को बिक्री से होन वाली आय पर एक मुश्त धनराशि अथवा लगातार प्राप्त होने वाली धनराशि दोनो ही रूप में स्वामित्व रायल्टी स्वीकार कने की अनुमति दी जा सकती है किन्तु प्रतिबंध यह है कि यदि

(1)पुस्तक केवल नौकरी के दौरान प्राप्त ज्ञान की सहायता से लिखी गयी है अथवा

(2)पुस्तक केवल सरकी नियमों विनियमों या कार्यविधियों केा संकलन मात्र है।

6 तो लेखक सरकारी कर्मचारी से जब तक कि राज्यपाल विशेष आदेश द्वारा अन्यथा निदेश न दें इस बात की अपेक्षा की जायेगी कि वह आय का एक तिहाई सामान्य राजस्व के खाते में उस दशा में जमा करें जब कि आय 250 रू से अधिक हो या यदि वह आवर्तक रूप में होने वाली तथा 250 रू वार्षिक से अधिक हो।

7 यदि पुस्तक सरकारी कर्मचारी द्वारा अपनी नौकरी के दौरान प्राप्त ज्ञान की सहायता से लिखी गयी है किन्तु वह सरकारी नियमों विनियमों और अथवा कार्यविधियों का संग्रह मात्र नहीं है वरनसंबंधित विषय पर लेखक के विद्धतापूर्ण अध्ययन को प्रगट करती है अथवा रचना के लेखक के सरकारी पद से न तो कोई संबंध है और न होने की संभावना है। तो पुस्तक की बिक्री की आय या स्वामितव से उसक द्वारा आर्वतक रूप मे में प्राप्त आय का कोई भाग सामान्य राजस्व के खाते में जमा करने की आवश्यकता नहीं है।

8 स्रकारी कोषागार में जमा की जाने वाली धनराशि आय व्ययक बजट शीर्षक ‘‘ सपप प्रकीर्ण -ग - प्रकीर्ण- (7)अन्य मदें ’’ के अर्न्तगत जमा की जानी चाहिये।
( उक्त अनुदेश वित्त विभाग की सहमति से जारी किये गये हैं )

अगली चर्चा में शामिल होगा यह प्रश्न कि
क्या मै राजकीय कर्मचारी रहते हुये किसी पत्रिका का संपादक बन कर पत्रिका प्रकाशित करा सकता हूँ?

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

क्या मै राजकीय कर्मचारी रहते हुये कोई पुस्तक लिख कर प्रकाशित करा सकता हूँ? भाग -1




बीते दिनो समाचार पत्र में एक महत्वपूर्ण समाचार ने मेरा ध्यान आकर्षण किया कि उत्तर प्रदेश में एक वरिष्ठ प्रादेशिक सिविल सेवा के अधिकारी (?)ने एक पुस्तक लिखी जिसके प्रकाशनोपरांत राज्य सरकार ने उन्हे राजकीय कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 के नियम 15 के अंतरर्गत दोषी पाते हुये न केवल निलंबित ही किया अपितु दोषसिद्ध होने पर सेवा से बर्खास्त भी कर दिया। कुछ समय बाद माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के सेवा बर्खास्तगी के आदेश को निरस्त करते हुये इस प्रकरण में राज्य सरकार को जरूरी निर्दश जारी किये हैं।

यह समाचार पढकर मेरे ही समान रचनात्मक रूझानधारी अन्य राजकीय सेवारत कार्मिक भी यह सोचने के लिये अवश्य विवश हुये होंगे कि अपने विचारों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाने के लिये आखिर किस नियम संहिता का पालन आवश्यक है।
अपने ऐसे ही सभी सहयोगी साथियों के लिये मैने इस विषय पर उपलब्ध सामग्री को समेटते हुये यह लेखमाला प्रारंभ की है जिसमें सबसे पहले चर्चा करेगें राजकीय कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 के नियम 15 तथा ऐसी पुस्तकों के प्रकाशन की जिनके प्रकाशन के लिये राजकीय अनुमति की आवश्यकता नहीं है।

क्या है आचरण नियमावली 1956 का नियम 15 ?

राजकीय कर्मचारी आचरण नियमावली 1956 के नियम 15 में यह निर्देश हैं कि कोई भी सरकारी कर्मचारी , सिवाय उस दशा के जबकि उसने राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः किसी व्यापार या कारबार में नहीं लगेगा और न कोई नौकरी करेगा। इस प्रकार पुस्तकें लिखना और प्रकाशित करना तथा उसके लिये रायल्टी (स्वामित्व) स्वीकार करने के लिये अनुमति प्राप्त करना इस नियम के अन्तर्गत सरकारी कर्मचारियों के लिये आवश्यक है।

इसके लिये उत्तर प्रदेश सरकार के नियुक्ति विभाग से जारी अधिसूचना संख्या ओ 3143/2 -बी-1968 लखनऊ दिनांक 11 दिसम्बर 1968 के अनुसार उत्तर प्रदेश के राजकीय कर्मचारियों के लिये आचरण नियमावली 1956 के नियम 15 के अधीन राजकीय कर्मचारियों द्वारा ऐसी साहित्यिक, कलात्मक, और वैज्ञानिक किस्म की रचनाओं के प्रकाशन के लिये सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है जिनमें उनके सरकारी कार्य से सहायता नहीं ली गई है और प्रकाशित के आधार पर स्वामित्व ( रायल्टी ) स्वीकार करने का प्रस्ताव नहीं किया गया है।

किन्तु सरकारी कर्मचारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रकाशनों में उन शर्तो का कढाई से पालन किया गया है जिनका उल्लेख अग्रेतर प्रस्तरों/आलेखों मे किया गया है । इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उसके प्रकाशनों से सरकारी कर्मचारियों की आचरण नियमावली के अन्य उपबन्धों का उल्लंघन तो नहीं होता है।

किन्तु उन सभी दशाओं में सरकार की पूर्व स्वीकृति लिये जाने की आवश्यकता है जिनमें लगातार के आधार पर स्वामित्व (रायल्टी) प्राप्त करने का प्रस्ताव हो। इस प्रकार की अनुमति देते समय रचना के पाठ्य पुस्तक के रूप में नियत किये जाने और ऐसी ही दशा में सरकारी पद के दुरूपयोग होने की सम्भावना पर भी विचार किया जाना चाहिये।

अग्रेतर आलेखों में उन परिस्थितियों पर भी विचार करेंगें जिनमें पुस्तकें लिखने तथा प्रकाशित करने और उनके लिये स्वामित्व ( रायल्टी ) स्वीकार करने की अनुमति दिये जाने संबंधी प्राविधान होंगे।

(?)पी0सी0एस0 अफसर श्री लक्ष्मी शंकर शुक्ल जी

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