सोमवार, 25 नवंबर 2013

''क्या यही है सिस्टम?''



अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता था जब एक राजस्व अधिकारी (तहसीलदार) की हत्या कर दी गयी थी यह हत्या खनन माफिया के इशारे पर की गयी अथवा नहीं यह तय होता की बीते कल उसी शहर में अपराधियों के विरूद्ध अपनी सख्ती के लिये जाने जाने वाले डिप्टी जेलर की भी हत्या कर दी गयी। यह संयोग था कि बीते कल प्रदेश के मखिया उस शहर में थे जहां उस जांबाज अफसर को अपनी अंतिम यात्रा पूरी करनी थी परन्तु वे उस जांबाज अफसर के घर तक नहीं गये । इसे खेदजनक ही कहा जायेगा ।

''क्या यही है सिस्टम?''

मच्छर आवाज़ उठाता है 
‘सिस्टम’ ताली बजाकर मार देता है 
और ‘मीडिया’ को दिखाता है भूखे मच्छर का खून 
अपना खून कहकर 

मच्छर बंदूक उठाते हैं
‘सिस्टम’ ‘मलेरिया’ ‘मलेरिया’ चिल्लाता है
और सारे घर में जहर फैला देता है

अंग बागी हो जाते हैं
‘सिस्टम’ सड़न पैदा होने का डर दिखालाता है
बागी अंग काटकर जला दिए जाते हैं
उनकी जगह तुरंत उग आते हैं नये अंग

‘सिस्टम’ के पास नहीं है खून बनाने वाली मज्जा
जिंदा रहने के लिए वो पीता है खून
जिसे हम ‘डोनेट’ करते हैं अपनी मर्जी से

- धर्मेन्द्र कुमार सिंह से साभार

 अग्निधर्मा कवि की पंक्तियाँ ...
दोहे चौपाई गीत ग़ज़ल छंद मल्हार न होते तो ...
दुनियाँ सूनी सूनी होती हम फनकार न होते तो ...
एक जाम में बिक जाते हैं जाने कितने खबरनवीस ...
सच को कौन कफ़न पहनाता ये अख़बार न होते तो ...
हम हरगिज़ तलवार न होते आप कटार न होते तो
...और इसके बाद उन्होंने ...
कभी कभी जी करता है पी लूँ चंबल का पानी
 ...जैसा भी बहुत कहा है ...

- अग्निवेश शुक्ल  से साभार

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